कांवड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

कांवड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

कांवड़ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना और उनकी कृपा प्राप्त करना है। भक्त गंगा नदी से जल भरकर अपने नजदीकी शिव मंदिरों में अभिषेक (जल चढ़ाना) करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह यात्रा भक्ति, समर्पण और संयम का प्रतीक मानी जाती है।

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पहली कांवड़ यात्रा या कांवड यात्रा की उत्पत्ति

भगवान परशुराम: एक मान्यता के अनुसार, पहली कांवड़ यात्रा भगवान परशुराम ने की थी। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर धाम से पवित्र गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया था. श्रवण कुमार: दूसरी मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर गंगा स्नान कराया और फिर गंगाजल लेकर भगवान शिव का अभिषेक किया था. रावण: एक अन्य कथा के अनुसार, लंकापति रावण ने भी कांवड़ यात्रा की थी। समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने के बाद भगवान शिव का गला जलने लगा था, तब रावण ने गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया था.

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– कांवड़ यात्रा 2024: इस साल कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू हुई और 26 अगस्त को समाप्त होगी।

कांवड़ तीन प्रकार के होते हैं:  डोंगी कांवड़, छड़ी कांवड़, और डाक कांवड़।